घरोंदा:- किसी को अपना विश्व निर्माण करते समय कठीण परिश्रम से गुजरना पडता है. लेकिन कभी-कभी कोई अंजान व्यक्ति आकर इस विश्व को उजाडना चाहता है. लेकिन जब उसी अंजान व्यक्ति को खुदका विश्व बनाने के लिये मेहनत करनी पडती है, तभी उसे अपने गलती का एहसास होता है.
एक सुखे हुये जंगल मे सिर्फ कुछ ही पेड बचे थे जिनकी टहनिया पर पत्ते बचे हुये थे. दस साल का रमेश उनमे से एक पेड की टहनियो का चारा तोड रहा होता है. तभी उसे एक टहनी पर एक पंछी का सुंदर घोंसला लटकते हुये दिखाई देता है. रमेश उस घोंसले को देखते रहता है. उसे वो घोंसला अच्छा लगता है. रमेश उस घोंसले को निकालता है और टहनियो का चारा लेकर घर की ओर निकल पडता है. रमेश घर पोहचता है. घर पर उसके पिताजी बैठे रहते है. उसका मिट्टी का एक छोटासा घर है.
उस मिट्टी के घर के ठिक सामने रमेश का नया ईंटो का घर बन रहा होता है. एक मिस्त्री और एक कारागीर उस घर का काम कर रहे होते है. मिट्टी के घर के बाजू मे कुछ बकरीया रस्सी से बंधी रहती है. रमेश वो टहनियो का चारा बकरीयो को डालता है. और पिताजी को वो घोंसला दिखाते हुए कहता है की, “देखो हमारे नये घर को सजाने के लिये मैने क्या लाया” पिताजी घोंसले की ओर देखकर कहते है, “पहले नया घर बनने तो दे”.रमेश के पिताजी उसे मिस्त्री की मदत करने को बोलते है. और वो खेत मे चले जाते है. रमेश, घोंसला लटकाकर मिस्त्री को ईंटे देने का काम करने लगता है. मिस्त्री ईंटो की छपाई करने लगते है. कारागीर सिमेंट का मिश्रण बनाने लगता है.
रमेश अभी दिनभर काम मे लगा रहता है. गरमी के दिनो की वजह से दिनभर रमेश का पसीना बहते जाता है. उसे गरमी मे काम करने मे बहोत तकलीफ होती है. लेकिन उसे उसका नया घर बनाना है, ये सोचकर वो और मेहनत से काम करने लगता है. धिरेधिरे दिन ढलता है. मिस्त्री अपना काम बंद करके अपने घर जाते है. दिनभर कीये काम की वजह से रमेश थक चुका होता है. वो एक नजर लटकाये हुए घोंसले पर डालता है और उसे समझ आता है की, घर बनाने के लिये बहोत मेहनत लगती है. इस घोंसले को जिस पंछी ने बनाया उस पंछी को भी उतनी ही मेहनत करनी पडी होगी. और मैने तो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये, उस पंछी ने तैयार कीये हुए घोंसले को ले आया. उसे इस बात का बहोत बुरा लगता है, उसके आंखो मे पाणी आता है.
दुसरे दिन रमेश सुबह जल्दी उठकर उस घोंसले को लेकर जंगल की ओर निकलता है. रमेश उस पेड के पास पोहचता है और वो घोंसला उस पेड पर लटकाकर नीचे उतरता है. रमेश अभी उस पेड के बाजू मे एक छोटासा गड्ढा खोदता है और वहा एक छोटासा पौधा लगाता है.
अब उसे पंछियो की आवाजे सुनाई देती है. और अभी एक पंछी धिरे से आकर उस घोंसले मे बैठ जाता है. रमेश के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देती है.
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