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बटुवा

बटुवा:- हर एक के जेब मे एक बटुवा होता है. उस बटुवे के पैसो का इस्तमाल सही जगह, सही वक्त पे करना चाहीये.

शाम का वक्त था. गणेश विसर्जन के लिये बडी भीड उमड रही थी. ढोल-नगाडो की आवाजे चारो ओर गुंज रही थी. ऐसे मे सार्वजनिक मंडल के एक गणेश विसर्जन की रॅली रास्ते पर पहोच चुकी थी. उनमे से 25 साल के कुछ लडके गुलाल उडाते हुए नाच रहे थे. सबने एक ही रंग का कुर्ता और पायजमा पहना हुवा था. 23 साल का अमोल उसी ग्रूप मे का एक लडका पुरी स्फूर्ति के साथ नाच रहा था. उसके कुर्ते  की जेब मे एक रुमाल था जो आधा अंदर और आधा बाहर लटक रहा था. इतने मे 8 साल का नरेश जिसके कपडे फटे हुए है, बाल बिखरे, चेहरे पर कोई निखार नही, वो भीड के लोगो को भिक मांग रहा था. लेकिन कोई उसकी तरफ नही देखता.

सब उसे अपने पास से भगा रहे थे. नरेश अभी अमोल के पास आकर उसे भिक मांगने लगता है. लेकिन अमोल नाचने मे व्यस्त है ऐसा जताके जानबूझकर उसकी तरफ नही देखता. नरेश फिरसे भिक मांगने लगता है लेकिन अमोल फिरसे उसकी तरफ नही देखता. ऐसा दो-तीन बार होने के बाद अमोल गुस्से से नरेश को देखता है और उसे जोर से धक्का देता है. उस धक्के की वजह से नरेश निचे गिरता है. अमोल गुस्से मे नरेश को गालीया देता है. सब लोग दोनो की तरफ देखने लगते है.

अमोल अपने कुर्ते से रुमाल बाहर निकालकर चेहरे का पसीना पोछता है. तभी उसकी जेब से पैसो का बटुवा नीचे गिरता है. अमोल पसीना पोछकर फिरसे नाचने लगता है. सब लोग फिरसे नाचने लगते है. रॅली थोडी आगे निकल जाती है. नरेश को थोडी सी चोट लगती है. वो उठने का प्रयास करता है. तभी उसे वो पैसे का बटुवा दिखाई देता है. वो बटुवा उठाता है और अमोल की तरफ जाता है. नरेश हाथो से अमोल को छुता है. अमोल नरेश की तरफ देखता है. और गुस्से से बोलता है, “तू फिरसे आया. तुम लोग सुधरने वाले नही”.ये सूनते ही नरेश अपना दूसरा हाथ आगे बढाकर उसे बटुवा देता है. अमोल का गुस्सा अब धिरे-धिरे शरम मे बदल जाता है. उसकी नजर शर्म से झुक जाती है.

नरेश की नजर से नजर मिलाने की अमोल मे हिम्मत नही रहती. अमोल अपना बटुवा वापीस लेता है और उसमे से 50 की नोट निकालकर नरेश को देने जाता है…  मगर नरेश दुखी चेहरे के साथ पिछे मुडता है और अपने दिशा की ओर चले जाता है. अमोल हाथो मे नोट लिये, जाते हुए नरेश को देखते रहता है. ढोल-नगाडो की आवाज अभी धिरे-धिरे कम होते जाती है.

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