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दो दुनिया

दो दुनिया:- खुद की नजर से अकेले की दुनिया जिने वाले दादाजी, अब उसी नजर से उनकी और उनके पोती की दुनिया जीते है.

एक बूक स्टोअर के दरवाजे पर ६० साल के एक दादाजी एक हाथ मे लाठी जमिन पर टिकाते हुए और दुसरे हाथ मे एक १० साल की लडकी सेजल का हाथ पकडे, बूक स्टोअर के अंदर जाते है. १० साल की सेजल जो दिखने मे प्यारी है, लेकिन आंखो से देख नही सकती. दादाजी उसका हाथ पकडकर १० से १५ वर्ष के बच्चो के लिये रखे हुए किताबो के शेल्फ की तरफ ले जाते है. सेजल चलते-चलते बडे प्यार से उन किताबो के उपर से हाथ फेरती है. दादाजी उसकी तरफ देखते है.

सेजल हाथ फेरते हुए उस शेल्फ से एक किताब बाहर निकालती है. उस किताब के खुशबू को मेहसूस करती है और दादाजी से पुछती है “इस किताब मे कौनसी कहानियां है”? दादाजी किताब की ओर देखकर कहते है “परीयों की कहानियां” सेजल एक पल रुकती है और फिरसे किताब की खुशबू महसूस करती है. किताब दादाजी के हाथ मे देती है. दादाजी किताब के पैसे काऊंटर पर देते है और दोनो भी वहा से निकलते है.

घर आकर दादाजी और सेजल दोनो आराम खुर्सी पर बैठे रहते है. दादाजी उस किताब की एक कहानी सेजल को सुना रहे है. सेजल बडी उत्साह से कहानी सून रही है. दादाजी कहानी सुनाते हुये कहते है “और फिर देवदत्त उस आवाज का पिछा करते-करते एक अद्भुत दुनिया मे पहोंच चुका था. उसके असल दुनिया से ये दुनिया बहोत ही अलग थी. ना ही उसने किसीसे सूनी और ना ही कभी देखी.” सेजल बडी ध्यान से कहानी सून रही थी. “आसमान जितनी उंचाई से गिरने वाला झरना, पंछियो से भी बडे पंछी, पेडो से भी बडे पेड, चिटी भी हाथी जितनी बडी. इतनाही नही बल्की जामून और बेर भी इतने बडे-बडे की एक पेड पर एक ही. सृष्टि के इस मनमोहक दृश्य और रूप को देखकर देवदत्त दंग रह गया और अब आंखिर मे उसे ये अहसास हुया के अपने आंखो के तो भाग ही खूल गये. सृष्टि की इस अनोखी जगह थोडी देर विश्राम करने के बाद देवदत्त आगे चलने लगा.

“ये सुनकर सेजल को कुछ अहसास होता है. सेजल मासूमियत से पुछती है, “दादू, आंखो के भाग खूल गये मतलब”? दादाजी सेजल की तरफ देखकर कहते है, “जब भी हम कोई ऐसी चीज देखते है जिससे ऐसा लगे कि इस चीज को हम बार-बार देखते रहे. बस देखते रहे. वो चीज हमारे आंखो के सामने ही रहे हमेशा के लिये. कभी हमसे दूर ना जाये.” सेजल थोडीसी भावनिक होती है, और कहती है, “दादू, मेरे आंखो के भाग कब खूलेंगे” ? ये सूनकर दादाजी के आंखो मे पानी आता है. वो भरी नजरो से सेजल की तरफ देखते है. सेजल पुछती है, “ये समंदर.. ये सृष्टि दिखने मे कैसी है दादाजी ? देवदत्त के कहानी की तरह ही है क्या” ? दादाजी भावनिक होकर सेजल के सर से हाथ फेरते हुए कहते है. “उससे भी कही गुना अच्छी. बिलकूल तेरी तरह बेटी. बहोत ही सुंदर.” फिरसे सेजल पुछती है की, “मै इस सुंदर समंदर…प्रकृती के अनेक रूप और आपको कब देख सकूंगी” ? ये सुनकर दादाजी भरी आंखो से सेजल की तरफ देखते ही रहते है.

८ महिने बाद ठिक उसी जगह दिखाई देता है की, दादाजी खुर्सी पर बैठे है. लेकिन सिर्फ उनकी पिठ दिखाई दे रही है. उनके खुर्सी के पास उनकी लाठी है. उनके सामने वाले खुर्सी पर सेजल बैठी है और अब इस बार सेजल के हाथ मे किताब है और वो कहानी सूना रही है. “…और अब देवदत्त घोडे पर सवार होकर अपनी परीराणी को उस दृष्ट राक्षस से छूडाने के लिये निकल चूका था.” दादाजी एक बच्चे की तरह उस कहानी को प्रतिसाद देते है. “हम्म”…जैसे-जैसे सेजल कहानी पढती रहती है, वैसे-वैसे धिरे-धिरे दादाजी का चेहरा दिखाई देता है. उनके आंखो पर अंधो का काले कलर का चश्मा चढा है. वो बडे ही आनंद और आश्चर्य से कहानी सून रहे है. सेजल आगे पढती है “देवदत्त को रास्ते मे रोकने के लिये राक्षसोका झुंड तयार था. पर अपनी तलवार की धार से सबको चिरते हुये देवदत्तने कदम आगे बढाये.” दादाजी बच्चे की तरह कहते है “अरे व्वा! शाब्बास! देवदत्त.” अब सेजल खुर्सी से उठती है, किताब टेबल पर रखती है और दादाजी का हाथ अपने हाथ मे लेकर उन्हे संभालते हुए उठाती है. सेजल दादाजी का हाथ पकडकर घर के आंगण मे आती है. आंगण मे फूलो के पौधे और खुब सारे पेड लगे है. दोनो के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देती है. दोनो भी खुलकर हसते है. सेजल,आंगण की उस हरियाली को देखकर प्रफुल्लित होती है.

सेजल के चेहरेपर मुस्कान है और दादाजी के चेहरे पर समाधान. आंखिर दादाजी के मन से एक बात निकलती है, “मै अबतक मेरी नजर से अकेले की दुनिया जिता आया था. अब ये मेरी नजर से दोनो की दुनिया जियेगी.” सेजल और दादाजी आंगण से दुरतक चलते जाते है, चलते जाते है, बस चलते जाते है.

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