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मोमबत्ती

मोमबत्ती:- इस टेक्नोसॅव्ही मे हम इतना खो गये की, हम जिना ही भूल गये.

२५ साल का आशिष अपने रूम मे बेडपर सोया हुवा होता है तभी उसके फोन का अलार्म बजता है. आशिष अपना हाथ मोबाइल के पास लेकर जाता है और अलार्म बंद करता है. बेडपर उठकर बैठता है. आशिष मोबाइल डेटा ऑन करता है. मोबाइल स्क्रीन पर मेसेजेस आते रहते है. आशिष गुड मॉर्निंग का मेसेज कॉपी करकर किसी को भेजता है. फिरसे मेसेजेस चेक करने लगता है. हॉल मे ४५ वर्ष के प्रकाश, फॉर्मल शर्ट-पॅन्ट पहने, एक हाथ से शर्ट की बटण लगाते और दुसरे हाथ से मोबाईल पर चॅटिंग करते रहते है. इतने मे २० साल की अर्चना उसके रूम से बाहर निकलती है.

जिन्स और टॉप पहने, कांधे पर कॉलेज बॅग, कान मे एअरफोन्स और हाथ मे मोबाईल लिये चॅटिंग करते हुए वहा से निकलती है. सोफेपर बैठे ६५ साल के दादाजी अर्चना की तरफ देखते है. बादमे प्रकाश की तरफ देखते है और अपना पेपर पढने लगते है. इतने मे ४० साल की अंजली सेमी-फॉर्मल कपडे पहने, हाथो मे टिफिन लिये हॉल मे आती है. उसके दुसरे हाथ मे मोबाईल है वो चॅटिंग कर रही है. अंजली टिफिन प्रकाश को देती है. प्रकाश अपने ही मोबाईल मे लगे हुए टिफिन लेते है और ऑफिस जाने के लिये निकलते है. अंजली भी ऑफिस के लिये निकलती है. दादाजी हैरत से दोनो को देखते है.आशिष अपने रूम से मोबाईल पर चॅटिंग करते हुए बाहर आता है.

दादाजी उसे देखते है. वो मोबाईल बाथरूम मे लेकर जाता है, गाणे लगाता है, ब्रश करता है, नहाता है फिर अपने रूम मे जाकर ऑफिस की तैयारी करता है. उसके मोबाईल मे मेसेजेस आते रहते है. वो बॅग लेकर, मोबाईल पर चॅटिंग करते हुए ऑफिस निकलता है. घर के सारे सदस्य काम की वजह से बाहर निकल जाते है. अब दादाजी अकेले ही घर मे रह जाते है. वो पेपर पढते है. पेपर पढने के बाद वो यहा-वहा टहलते है. खिडकी के पास जाते है.फिरसे अपनी जगह बैठते है. उन्हे पुरी तरह से अकेलापण महसूस होता है. यूंही दिन गुजरता है. शाम होती है. बाहर तेज बारीश चालू होती है. बारीश की वजह से पुरी सोसायटी की लाइट चली जाती है. दादाजी खिडकी से बारीश को देखते रहते है. तभी अंजली और प्रकाश ऑफिस से घर आते दिखाई देते है. साथ मे आशिष और अर्चना भी आते है. सब लोग घर के अंदर आते है और मोबाईल चार्जिंग लगाने के लिये जाते है लेकिन बिजली के चले जाने की वजह से सब लोग मायूस होकर हॉल के सोफे पर बैठ जाते है. दादाजी खिडकी के पास से उन्हे देखते है. दादाजी अब बडी मोमबत्ती जलाकर हॉल मे लेकर आते है और टेबल पर रखकर वो सामने बैठते है. सब लोग मायूस होकर अपने-अपने मोबाईल टेबल पर रखते है. अब दादाजी पहली बार कुछ बोलने लगते है, “आज मोबाईल की वजह से तुम इतने व्यस्त हो गये हो की तुम्हे एक दुसरे से बात करने के लिये भी फुरसत नही. हमारे समय हम ऐसे साथ बैठकर बातचीत करते थे, एक दुसरो के सुख-दु:ख मे साथ देते थे.

उस समय जो प्रेम, जो अपनापण था वो अभी कही तो खो चुका है. शायद तुम भूल चुके हो वो किस्से, कहानिया. भूल गये हो समंदर किनारे बनाया हुवा रेत का किला. या शायद तुम भूल चुके हो वो सबकुछ जहा तुम छोटे-छोटे पल को जीते थे.” ये सूनकर आशिष का मन भर आता है और वो बोलने लगता है, “सच मे हम इस टेक्नोसॅव्ही मे इतना खो गये की, हम जिना ही भूल गये. वो भी क्या दिन थे जब मै अर्चना की चुटी बांधा करता था.” अब अर्चना भी बोलने लगती है की, “और भैय्या, आप पत्थर से आम गिराते थे और मै वो आम कर चुपके से अकेली खाती थी. फिर आप मा के पास जाकर रोते थे.” दोनो की बाते सूनकर अंजली भी भावुक होकर कहती है, “और जब तुम रोते हुए मेरे पास आते थे तब मै तुम्हे १ रुपया देती थी फिर तुम उस पैसे से कच्चे आम की कैरीया खाते थे.”अब प्रकाश भी बोलने लगते है की, “बचपन मे मै बहोत शरारती था. पिताजी जब मुझे स्कूल छोडने के लिये धुंडते थे तब मै छुपकर बैठता था. और जब मै उनके हाथ लगता था वो मेरी बहोत पिटाई करते थे.

“ये सूनकर सब लोग हसने लगते है. अब सभी लोग आपस मे घुल मिल जाते है. ये देखकर दादाजी के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देती है. लाइट अभी भी नही आयी है. टेबल पर सब लोगो के मोबईल्स रखे हुए है.और मोमबत्ती निरंतर जलती हुयी दिखाई देती है.

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