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स्वाभिमान

स्वाभिमान:- किसी चीज का मोह न करते हुए आप जिंदगी जीते रहते है, तो उस बदले मे आपको खुशिया जरूर मिलती है.

शाम ६ बजे का समय था. कचरे से भरा एक ट्रक, शहर के डम्पिंग ग्राउंड पर आता है, कचरा खाली करता है और निकलता है. डम्पिंग ग्राउंड के बाजू मे ही एक छोटी सी नदी है जो वहा के फॅक्टरी और गंदे कचरे से भरकर बह रही है. उसी नदी के बाजू मे एक बस्ती है जहा के लोग उसी कचरे मे रह रहे है. जिसकी वजह से वहा तरह-तरह की बिमारीयो का उन्हे सामना करना पड रहा है.

उसी बस्ती मे १२ साल की एक लडकी मिरा रहती है. उसके मा-बाप मजदूरी करके घर चलाते है. आज रविवार के कारण मिरा को स्कूल मे छूट्टी थी, लेकिन मिरा के मा-बाप ठहरे मजदूर, उनके लिये क्या रविवार और क्या सोमवार इसीलिए हर दिन की तरह मिरा के मा-बाप कामपर निकलते है. मिरा घरपर बैठे पढाई कर रही होती है. इतने मे उसकी दोस्त राधा उसके घर आकर उससे नदी के पासवाले पेड के आम तोडने के लिये चलने को कहती है. आम का नाम सूनते ही मिरा के मुहं मे पाणी आता है, मिरा और राधा दोनो पेड के पास आकर आम को पत्थर मारते रहते है. कुछ आम नीचे गिरते है. पेड के पास उडकर आयी प्लॅस्टिक थैली मे दोनो आम भरती है और निकलती है. नदी के पास से चलते आम खाते हुए दोनो डम्पिंग ग्राऊंड की ओर से निकलती है.

दोनो की स्कूल की पढाई पर बाते चलते रहती है, तभी दोनो कल रात जिस ट्रक ने डम्पिंग ग्राऊंड पर कचरा डाला था उस जगह पोहचती है और तभी मिरा का पैर किसी चीज को अटककर वो नीचे गिरती है. उसे थोडी सी खरोच आती है. मिरा की नजर उस चीज पर गिरती है. वो उस चीज को उठाती है, वो एक ‘जेन्ट्स हँड बॅग’ होता है. मिरा उसकी चैन खोलकर देखती है और आश्चर्यचकीत हो जाती है.
उस बॅग मे पैसो की गड्डी होती है. राधा उसे चलने को बोलती है, मिरा कुछ देर सोच मे बैठे रहती है और फिर बोलती है के, “हमे ये पैसे जिस किसी के है उसे वापस करने चाहीये”. राधा कहती है, “लेकिन हमे कैसे पता की ये पैसे किसके है, किसी चोर ने चोरी करके या किसी का खून करके ये पैसे यहा पे छुपाये होगे”. मिरा सोच मे डुबी रहती है तभी उसे कुछ याद आता है और वो राधा से कहती है की, “हमे ये पैसे पुलीस के पास देने चाहीये”.
पुलीस का नाम सूनते ही राधा डर जाती है, और कहती है की, “पुलीस के चक्कर मे मत पड मिरा, वो उलटे-सिधे जवाब पुछकर हमे ही दोषी ठहरायेगी”. मिरा मानने को तैयार नही थी. आंखिर राधा अकेली घर की ओर चली जाती है और मिरा फैसला करकर उठती है और शहर की ओर निकलती है. हाथ मे पैसो से भरा बॅग लेकर मिरा शहर की शोर-शराबो मे फंस जाती है. एक दुकानदार से पुलीस स्टेशन का रास्ता पूछकर आंखिर वो पुलीस स्टेशन तक पहुचती है. मिरा अंदर जाती है, पुलीस ऑफिसर के कॅबिन मे आती है. कॅबिन मे पुलीस ऑफिसर और एक राजनैतिक कार्यकर्ता परेशान होकर गुम हुए पैसो के बॅग के बारे मे ही बाते कर रहे होते है. तभी मिरा के हाथ मे वो बॅग दिखाई देती है. और वो राजनैतिक कार्यकर्ता उस बॅग को पेहचान जाते है. और मिरा से पुछने लगते है की, ये बॅग तुम्हे कहा मिली ? मिरा उन्हे सब बताने लगती है.

तभी राजनैतिक कार्यकर्ता को कुछ याद आता है, और वो ये बॅग कैसे डम्पिंग ग्राऊंड तक पहुंची इसकी हकीकत बताते है. दरअसल कल दोपहर को राजनैतिक कार्यकर्ता एक टपरी के बेंच पर बैठकर चाय पिते रहते है, तभी उनके पॅन्ट की जेब से ये बॅग वहा के कचरे के डब्बे मे गिरता है, और ठिक उसी वक्त एक बडा सा कचरे का ट्रक वहा आकर उस टपरी मे का कचरा ट्रक मे डालते है. उस वजह से ये पैसो का बॅग उस बडी ट्रक मे जाता है, और वो बडा ट्रक वही कचरा लेकर डम्पिंग ग्राऊंड तक आता है.

ये सुनकर सबको यकिन होता है की ये बॅग इन्ही का है. राजनैतिक कार्यकर्ता और पुलीस ऑफिसर मिरा का आभार मानते है उसके लिये तालिया बजाते है. राजनैतिक कार्यकर्ता मिरा से कहते है की तुम्हे बदले मे क्या तोहफा चाहीये ? मिरा कुछ भी नही बोलती. लेकिन राजनैतिक कार्यकर्ता जब कहते है की, तुमने बहोत बडा कार्य किया है. ये पैसे हम सामाजिक कार्य के लिये ही जमा कर रहे थे, तभी मिरा कहती है की, अगर ऐसी बात है तो हमारे बस्ती के नालो की सफाई के लिये आप मदत कर सकते हो. क्योकी, डम्पिंग ग्राऊंड की वजह से सारा कचरा हमारे बस्ती मे आता है, जिसकी वजह से बहोत सी बिमारीयो का सामना हमे करना पडता है. वहा पिने का पाणी भी अशुद्ध आता है, लोगो ने इतनी बार अर्जी करने के बाद भी वहा कोई सफाई करने नही आता. ये सुनकर सबको अफसोस होता है.

दुसरे दिन कुछ सरकारी कामगार बस्ती के कचरे को साफ करते है. कुछ लोग नल की पाईपलाइन खोदकर वहा का कचरा साफ करते है. एक सफाई कामगार बस्ती के घर-घर मे वॉटर फिल्टर के लिये नल को लगाने वाली छोटी जाली बांटता है. बस्ती के सब लोग और छोटे बच्चे, बस्ती का ये नया रूप देखने लगते है. मिरा के मा-बाप के चेहरे पर मुस्कान है. राजनैतिक कार्यकर्ता उनसे कहते है की, “कठीण परिस्तीथी होने के बाद भी जब एक पैसे का बॅग मिरा को मिला, तभी उन पैसो का मोह न करते हुए ये बॅग पुलीस के पास लाकर जमा किया. इसी मे उसका स्वाभिमान छुपा है”. अगर मिरा जैसी लडकी हर घर मे पैदा हो तो इस देश के प्रगती को कोई नही रोक सकता. बस्ती के सारे लोग मिरा को बडी सन्मान से देखते रहते है. मिरा के मा-बाप के चेहरे पर मिरा के प्रती गर्व दिखाई देता है.

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