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विसर्जन पिझ्झा

विसर्जन पिझ्झा :- समाज मे कुछ ऐसे भी लोग है जो रास्ते पर खडे रहकर अपनी शरम पिझ्झा के साथ खा जाते है.

 

शाम का वक्त था. पिझ्झा शॉप मे टेबल्स पर ग्राहको की भीड थी. फूड काऊंटर भी काफी व्यस्त था. शॉप के वर्कर्स अपने काम मे व्यस्त थे. एक वर्कर ने पिझ्झा बनाके सामने वाले वर्कर को पास किया. वो वर्कर पिझ्झा एक बॉक्स मे पॅक करके काऊंटर के पास लेकर आया. कम्प्युटर ऑपरेटर ने बिल और पिझ्झा डिलीव्हरी बॅग मे रखकर डिलीव्हरी बॉय विवेक के पास दे दिया. विवेक पिझ्झा डिलीव्हरी बॅग कंधे पे लटकाये बाइक से डिलिव्हरी करने निकल पडा.
गणेश विसर्जन की भीड बढ रही थी. ढोल-नगाडो की आवाज मे लोग नाच रहे थे. इन्ही लोगो के बिच २५ साल के तीन लडके अजित, पंकज और राहुल गुलाल उडाते, पसीने से लतपत हुए नाच रहे थे. इतने मे विवेक बाइक लेकर उस भीड के पास पहुचता है. भीड की वजह से उसे बाइक लेकर आगे जाने नही आता. दुसरा कोई शॉर्टकट भी नही था. इसलीये ना चाहकर भी विवेक को अपनी बाइक उस जगह रुकानी पडती है. नाच-नाच कर थके अजित, पंकज और राहुल थोडी देर आराम करने की सोचकर भीड से बाहर आकर विवेक की बाइक के पास खडे रहते है. तिनो को भी अब बेहद भूक लगी थी. ऐसे मे अजित की नजर विवेक के डिलीवरी बॅग के उपर जाती है. अजित तुरंत पंकज और राहुल को इशारा करता है. अभी तिनो भी विवेक के पास आकर उसके बॅग मे से पिझ्झा बाहर निकालने लगते है.
विवेक डर जाता है. वो उनसे दया की भिक मांगने लगता है. लेकिन तिनो भी मानने को तैयार नही थे. तिनो भी पिझ्झा निकालकर खाने लगे. विवेक उनसे बिनती करता रहा की, “ये पिझ्झा किसी और ग्राहक का ऑर्डर है. ये उनतक पोहचाना है.” तिनो भी सूनने के हालात मे नही थे. विवेक के साथ बहस करके उन्हे गालीया देने लगे. बाकी लोग बस देख रहे थे. पिझ्झा खाने के बाद तिनो भी निकलने की तयारी मे थे. विवेक उन्हे पिझ्झा के पैसे देने को कहने लगा. लेकिन तिनो भी उसे और ज्यादा धमकाने लगे. “एक तो ऑर्डर ग्राहक तक पहुंची नही, मेरा बॉस मुझपर चिल्लायेगा और इसका बिल मुझसे निकालेगा. इसलीये प्लीज मुझे मेरे पैसे दे दो. “ऐसा विवेक बोलता गया लेकिन तिनो भी उसकी ओर ध्यान नही दे रहे थे.

इतने मे ४० साल का एक आदमी राजीव उस भीड से निकलकर उनके पास आता है. फॉर्मल शर्ट-पॅन्ट पहने, वन साइड बॅग लटकाये हुए वो विवेक की समर्थन मे उन तिनो लडको को बोलने लगता है. “गणेशजी की विसर्जन की तयारी चालू है. लेकिन उसीके साथ आप अपने मनुष्य होने के गुणो को भी विसर्जित करने जा रहे हो. बिते 10 दिन आपने सिर्फ गणेशजी का बाजार खडा किया. उनकी सदविवेक बुद्धी को कभी आचरण मे नही लाया. तुम्हारे जैसा ये भी एक मनुष्य है. इसकी और तूम्हारी जरूरते भी  बराबर ही है. फिर आप लोगो को किस चीज का गुरूर ? आपमे थोडीसी भी मनुष्यता बची है और आपको उसकी शर्म है तो आप तिनो उससे माफी मांगो और उसके पिझ्झा के पैसे उसे वापस कर दो. “राजीव का ये कहना तिनो के भी दिल को लगता है. तिनो की नजरे शरम से नीचे झुकती है.

राहुल विवेक के पास आता है और अपनी जेब से 200 रुपये निकालकर विवेक के हाथ मे देता है. तिनो भी विवेक से माफी मांगते है. विवेक के चेहरे पर हंसी खिल उठती है. विवेक राजीव की ओर धन्यवाद की नजरो से देखता है. रास्ते की भीड आगे बढते रहती है. भीड के साथ वो तिनो लडके भी आगे निकल जाते है. राजीव भी अपने रास्ते निकल जाता है. विवेक पिझ्झा शॉप मे वापस आता है. पिझ्झा शॉप का मॅनेजर उसे बहोत डांटता है. और उसे वही ऑनलाइन ऑर्डर फिरसे वापस ले जाने को कहा जाता है. विवेक फिरसे ऑर्डर पॅक करता है और बाइक से उस पते पर पहोचता है. दरवाजे की बेल बजाता है. अंदर से एक 35 साल की स्त्री दरवाजा खोलती है. ऑर्डर थोडी लेट होने की वजह से विवेक उस स्त्री से माफी मांगता है और पिझ्झा उसके हाथ मे देता है.

वो स्त्री भी मुस्कुराकर “कोई बात नही” कहके पिझ्झा लेती है और पैसे लाने के लिये अंदर जाती है. घर के अंदर से एक आदमी टॉवेल से अपने बाल सुखाते-सुखाते दरवाजे के पास आता है. वो आदमी राजीव होता है जिसने गणपती विसर्जन मे उन तिनो लडको से माफी मंगवाकर विवेक के पैसे उसे दिलाये थे. विवेक और राजीव की नजरे मिलती है. विवेक राजीव से कहता है “सर आप यहा रहते हो”? राजीव विवेक को घर के अंदर बुलाता है. दोनो सोफे पर बैठते है और राजीव अपने पत्नी को आवाज देकर कहता है की, पिझ्झा के तीन तुकडे करना.

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